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औघड़ का दान - उपन्यास
Pradeep Shrivastava
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-1 सीमा अफनाई हुई सी बहुत जल्दी में अपनी स्कूटी भगाए जा रही थी। अमूमन वह इतनी तेज़ नहीं चलती। मन उसका घर पर लगा हुआ था जहां दोनों बेटियां और पति कब के पहुंच चुके होंगे। दोनों बेटियों को उसने डे-बोर्डिंग में डाल रखा था जिन्हें ऑफ़िस से आते वक़्त पति घर ले आते थे और सुबह छोड़ने भी जाते थे। क्योंकि उसके ऑफ़िस एल.डी.ए. में समय की पाबंदी को लेकर हाय तौबा नहीं थी। हां वह सब समय से पहले पहुंचते हैं जिन्हें ऊपरी इनकम वाली जगह मिली हुई थी। और जो सुबह
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-1 सीमा अफनाई हुई सी बहुत जल्दी में अपनी स्कूटी भगाए जा रही थी। अमूमन वह इतनी तेज़ नहीं चलती। मन उसका घर पर लगा हुआ था जहां दोनों बेटियां और पति कब के ...और पढ़ेचुके होंगे। दोनों बेटियों को उसने डे-बोर्डिंग में डाल रखा था जिन्हें ऑफ़िस से आते वक़्त पति घर ले आते थे और सुबह छोड़ने भी जाते थे। क्योंकि उसके ऑफ़िस एल.डी.ए. में समय की पाबंदी को लेकर हाय तौबा नहीं थी। हां वह सब समय से पहले पहुंचते हैं जिन्हें ऊपरी इनकम वाली जगह मिली हुई थी। और जो सुबह
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-2 जब काम निपटा कर पहुंची बेडरूम में तो साढे़ ग्यारह बज रहे थे। बच्चे, पति सोते मिले। एक-एक कर दोनों बच्चों को उनके कमरे में बेड पर लिटाने के बाद वह खुद आकर ...और पढ़ेके बगल में लेट गई। अब तक थक कर वह चूर हो चुकी थी। पति को सोता देख उसने सोचा चलो कल करेंगे बात। फिर आंखें बंद कर ली। उसे बड़ा सुकून मिला दिन भर की हांफती दौड़ती हलकान होती ज़िंदगी से। उसे अभी आंखें बंद किए चंद लम्हे ही बीते थे कि पति की इस बात ने उसकी आंखें
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-3 ‘हूं .... तुम्हारी सोफी की ज़िंदगी में बड़े पेंचोखम हैं। मायका-ससुराल नाम की कोई चीज बची नहीं है। ले दे के जुल्फ़ी और जुल्फ़ी है। और वो इसी का फ़ायदा उठा रहा है।’ ...और पढ़ेइसी का फ़ायदा उठा रहा है। जैसा चाहता है वैसा व्यवहार करता है। कल रात ऐसा मारा कि हाथ में फ्रैक्चर हो गया। रात भर कराहती रही सुबह हाथ सूजा हुआ देख कर भी एक बार न पूछा कि कैसे ऑफ़िस जाओगी। और वह भी न जाने किस मिट्टी की बनी है कि इस हालत में भी स्कूटी चला कर
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-4 अगले दिन उम्मीद के मुताबिक सीमा को ऑफ़िस में सोफी नहीं मिली। उसने उसे फ़ोन कर उसका हालचाल लिया तो सोफी ने बताया ‘सूजन अभी है। दर्द पहले से कुछ ही कम हुआ ...और पढ़ेऑफ़िस दो-चार दिन बाद ही आ पाएगी।’ उसने यह भी बताया कि ‘पहले तो पति इस बात पर चिल्लाया कि उसको क्यों नहीं बताया। सारे ऑफ़िस में उसकी मार-पीट की बात बताकर उसकी निंदा कराई होगी। लेकिन तब शांत हुआ जब उसे यह बताया कि नहीं ऐसा कुछ नहीं बताया। तुम्हारे अलावा लोगों को सिर्फ़ इतना ही मालूम है कि
औघड़ का दान प्रदीप श्रीवास्तव भाग-5 ‘माफ करना सोफी मगर तुम्हारे आदमी और जल्लाद में कोई बड़ा फ़र्क मुझे दिखता नहीं। तुम्हारी हालत देख कर समझ में नहीं आता कि क्या करूं। बाबा के यहां जाने के लिए तुम ...और पढ़ेसे कुछ कह नहीं सकती। और सबसे यह बात शेय़र नहीं की जा सकती।’ ‘क्या वहां अकेले जाने वाला नहीं है। या तुम अगर थोड़ा वक़्त निकाल सको।’ ‘इन्होंने जैसा बताया उस हिसाब से ऐसा कुछ नहीं है। टेम्पो भी आते-जाते हैं। जहां तक मेरे चलने का प्रश्न है तो... देखो सोफी बुरा नहीं मानना मैं भी अपने आदमी को