Kshama Karna Vrunda book and story is written by Pradeep Shrivastava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Kshama Karna Vrunda is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
क्षमा करना वृंदा - उपन्यास
Pradeep Shrivastava
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
......एक गुमनाम नर्स की असाधारण कथा
मैं क़रीब दो साल की रही होऊँगी, तभी मेरे पेरेंट्स का डायवोर्स हो गया था। इसके बाद मदर मुझे लेकर ननिहाल आ गईं। ननिहाल में तब नाना-नानी थे। उन्हें बहुत शॉक लगा कि उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन चार साल भी नहीं चला।
उन्हें शॉक इस बात का भी लगा कि बेटी डायवोर्स लेकर सिलवासा से दिल्ली आ गई, लेकिन उन्हें इस बात की भनक भी नहीं लगने दी कि डायवोर्स लेकर आई है। कभी फ़ोन पर बात-चीत में या जब साल भर पहले आई थी, तब भी यह संकेत तक नहीं दिया था कि उन दोनों पति-पत्नी में कोई मन-मुटाव चल रहा है।
मत-भेद, मन-भेद इतने हो चुके हैं कि अब साथ रहना मुश्किल हो गया है। जब बच्ची को लेकर आई तो अपने व्यवहार से यह पता ही नहीं चलने दिया कि जीवन का इतना बड़ा निर्णय लिया है। और निश्चित ही कड़क स्थितियों से गुज़र कर आई है।
“अकेली ही क्यों आई बेटा?” नानी के यह पूछने पर अटपटा सा जवाब दिया था, “मॉम वह वहीं पर हैं।”
यह नहीं बताया कि डायवोर्स लेकर आई हैं। उनका बहुत उखड़ा-उखड़ा सा चेहरा देखकर जब अगले दिन नानी ने काफ़ी पूछा तो मदर ने संक्षिप्त सा जवाब दे दिया था, “मॉम हमारा डायवोर्स हो गया है।”
यह सुनकर नाना-नानी उन्हें अवाक् देखने लगे, तो उन्होंने बड़ी आसानी से जवाब दिया था, “मॉम हमने महसूस किया कि हम अब एक साथ नहीं रह सकते तो यह स्टेप उठाया। हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं बचा था। हम-दोनों को ही मन-भेद के साथ रिश्ते को झेलते रहना पसंद नहीं था। अब हम-दोनों आज़ाद हैं।”
प्रदीप श्रीवास्तव भाग -1 ......एक गुमनाम नर्स की असाधारण कथा मैं क़रीब दो साल की रही होऊँगी, तभी मेरे पेरेंट्स का डायवोर्स हो गया था। इसके बाद मदर मुझे लेकर ननिहाल आ गईं। ननिहाल में तब नाना-नानी थे। उन्हें ...और पढ़ेशॉक लगा कि उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन चार साल भी नहीं चला। उन्हें शॉक इस बात का भी लगा कि बेटी डायवोर्स लेकर सिलवासा से दिल्ली आ गई, लेकिन उन्हें इस बात की भनक भी नहीं लगने दी कि डायवोर्स लेकर आई है। कभी फ़ोन पर बात-चीत में या जब साल भर पहले आई थी, तब भी यह संकेत
भाग -2 मैं सोचती कि क्या लड़की केवल पुरुषों के भोग लिए बनी, एक जीती-जागती मशीन भर है। घर बाहर कहीं भी, क्या वह निश्चिंत होकर नहीं जी सकती। ऐसे क्षणों में मुझे किशोरावस्था में घर पर बार-बार आने ...और पढ़ेअपने एक अंकल ज़रूर याद आते। जो किसी चर्च से जुड़े हुए थे। शौक़िया फ़ोटोग्राफ़र भी थे। कोई ख़ास काम-धाम नहीं करते थे, फिर भी न जाने कैसे उनके पास बहुत पैसा था। अपनी दोनों लड़कियों को अमरीका में पढ़ा रहे थे। जब भी आते तो मेरे लिए पेस्ट्री, कैडबरीज़ चॉकलेट का बड़ा गिफ़्ट पैक ज़रूर लाते। यह सब मुझे
भाग -3 एक दिन मन में ऐसी ही पुरानी बातों को सोचती हुई मैं वॉर्ड बिज़ी में थी। सुबह से ही तनाव के कारण हल्का-फुल्का नाश्ता करने के अलावा कुछ नहीं खाया था। दोपहर के कुछ समय बाद ही ...और पढ़ेएमर्जेन्सी डिलीवरी का केस आ गया। शुरू में लगा कि मामला सीरियस है। लेकिन घंटे भर में नॉर्मल डिलीवरी हो गई। जब शाम को मेरी ड्यूटी ऑफ़ हुई तो मैं घर नहीं गई। रेस्ट-रूम में लेटी मोबाइल पर सोशल-मीडिया के ज़रिए अपने माँ-बाप को ढूँढ़ने में लगी रही। थोड़ा ही समय बीता था कि एक साथी नर्स ने आकर कहा
भाग -4 सोते ही मैं सपना देखने लगी कि मैंने लियो को अपनी छाती पर लिटाया हुआ है, उसके साथ बातें कर रही हूँ। मेरी बातों पर वह ख़ूब हाथ-पैर चला रहा है। बीच-बीच में थक जाता है, तो ...और पढ़ेनन्हें-नन्हें नाज़ुक से हाथों से मेरी छाती से कपड़े हटाने की कोशिश करने लगता है। उसे चिढ़ाने के लिए मैं कपड़ों पर हाथ रख लेती हूँ। जब वह कपड़े नहीं हटा पाता है, तो रोने लगता है। उसका रोना देख कर मैं एकदम भाव-विह्वल हो ख़ुद ही कपड़े हटा देती हूँ। स्तनों को देखते ही वह जल्दी से निपल मुँह
भाग -5 मुझे सबसे ज़्यादा कष्ट दुःख तब होता, जब लियो खाने-पीने की चीज़ें माँगने के लिए हाथ से तरह-तरह के संकेत करता, लेकिन मैं समझ ही न पाती। ऐसे ही बाथरूम जाने की बात कहता, लेकिन वह भी ...और पढ़ेन पाती, जिससे उसके कपड़े ख़राब हो जाते। एक दिन जब वो बच्चों वाले कमोड पर बैठा हुआ था, तभी मेरे दिमाग़ में आया कि क्यों न मैं भी लुइ ब्रेल की तरह प्रयास करूँ। लियो, लियो जैसे बच्चों को पढ़ाने की प्रणाली ढूँढ़ूँ। यह सोचते ही मेरे दिमाग़ में एक प्रणाली की रूप-रेखा कुछ-कुछ स्पष्ट होने लगी। मैंने लियो