O Bedardya book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. O Bedardya is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
ओ...बेदर्दया - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
एक ऐसी प्रेमकहानी जो हमेशा के लिए अधूरी रह गई,एक शक ने दोनों को हमेशा के लिए एकदूसरे से जुदा कर दिया...
"सौरभ कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हमें शहर जाना है,तुम्हारी माँ को जेल से लेने,कल उनकी उम्र कैद की सजा खत्म हो रही है,बृजनाथ जी बोले....
"मामा जी!मैनें आपसे पहले ही कहा था कि मैं किसी को लेने शहर नहीं जाऊँगा"सौरभ बोला...
"लेकिन क्यों"?बृजनाथ जी ने पूछा...
"वो मेरे पिता की हत्यारिन हैं,मैं उन्हें कभी भी माँफ नहीं कर सकता"सौरभ बोला...
"तुम दुर्गा जीजी को गलत समझ रहे हो बेटा!",बृजनाथ जी बोले....
"मैं बिल्कुल सही समझ रहा हूँ, मैनें अपनी आँखों के सामने उन्हें पिता जी को हँसिए से मारते हुए देखा था",सौरभ बोला...
"वो तुम्हारी आँखों का धोखा था"बृजनाथ जी बोले...
"मैनें किसी और को ये सब कहते हुए सुना होता तो अलग बात थी,लेकिन उस रात मैनें वो सब अपनी आँखों के सामने घटते देखा था",माना कि मैं उस समय सात बरस का था लेकिन इतना छोटा भी नहीं था कि कुछ समझ ना पाता",सौरभ बोला...
"तुम्हारी माँ ने तुम्हारे पिता का कत्ल किया,ये एकदम सच है लेकिन किन हालातों में किया वो तुम्हें नहीं पता"बृजनाथ जी बोले....
एक ऐसी प्रेमकहानी जो हमेशा के लिए अधूरी रह गई,एक शक ने दोनों को हमेशा के लिए एकदूसरे से जुदा कर दिया... "सौरभ कल सुबह जल्दी तैयार हो जाना, हमें शहर जाना है,तुम्हारी माँ को जेल से लेने,कल उनकी ...और पढ़ेकैद की सजा खत्म हो रही है,बृजनाथ जी बोले.... "मामा जी!मैनें आपसे पहले ही कहा था कि मैं किसी को लेने शहर नहीं जाऊँगा"सौरभ बोला... "लेकिन क्यों"?बृजनाथ जी ने पूछा... "वो मेरे पिता की हत्यारिन हैं,मैं उन्हें कभी भी माँफ नहीं कर सकता"सौरभ बोला... "तुम दुर्गा जीजी को गलत समझ रहे हो बेटा!",बृजनाथ जी बोले.... "मैं बिल्कुल सही समझ रहा
शास्त्री जी जैसे ही सौरीगृह में पहुँचें तो उन्हें देखकर शैलजा खुशी से रो पड़ी और उनसे बोली... "लीजिए!आपका लाल आपका इन्तजार कर रहा था" शास्त्री जी ने शैलजा से कुछ नहीं कहा,बस एक उत्साह भरी दृष्टि उस पर ...और पढ़ेऔर वें नवजात शिशु के पास चारपाई के नीचें बैठ गए और लालटेन की मद्धम रौशनी में उन्होंने कपड़े में लिपटे हुए शिशु को निहारा और हौले से उसके माथे को चूमा फिर शैलजा से बोलें.... "मैं बाहर जा रहा हूँ, इतनी खुशी मुझसे बरदाश्त ना होगी" और ये कहते कहते उनकी आँखें भर आईं,जाते जाते शैलजा से कहते गए
शैलजा का अन्तर्मन तड़प रहा था कि उसने इतनी बड़ी बात अपने पति से छुपाई,उसका वश चलता वो अभी उन्हें सबकुछ बता देती,लेकिन बच्चे के भविष्य का सवाल था,ऐसा ना हो कि उन्हें सब पता चल जाएं और उनका ...और पढ़ेबच्चे से कट जाए,वो बाप-बेटे के बीच अलगाव का कारण नहीं बनना चाहती थी,इसलिए वो भावनाओं में ना बही और उसने उस वक्त चुप रहना ही बेहतर समझा.... दिन गुजरने लगें और अब अभ्युदय छः महीने का हो चला था,छः महीने का होने पर उसका अन्नप्राशन हुआ,शास्त्री जी ने सुनार से कहकर खासतौर पर अभ्युदय के लिए चाँदी के बरतन
जब शास्त्री जी घर लौटे तो शैलजा ने उन्हें सब बता दिया,इस बात से शास्त्री जी बहुत नाराज हुए और शैलजा से बोलें... "मैं अभी नालायक के घर जाता हूँ उसकी ख़बर लेने" तब शैलजा बोली... "सुनिए जी!बात मत ...और पढ़ेउसके बीच कहा सुनी हुई और उसने आपको अशब्द बोल दिए तो मैं सह नहीं पाऊँगी,वैसे भी सारा गाँव जानता है कि उसका कैसे कैसे लोंगो के साथ उठना बैठना,चौबीसों घण्टों गाँजा पीता रहता है,गलती मेरी थी जो आपके घर पर ना होने पर मैनें उसके लिए दरवाजा खोल दिया,मुझे क्या पता था कि वो नीच इस हद तक गुजर
शैलजा भीतर से बहुत डरी हुई थी,क्योंकि वो लल्लन की हरकतों से पूरी तरह से वाकिफ थी,लल्लन का मेल जोल नेताओं और गुण्डों के साथ था,जबकि उसका पति तो एक सीधा सादा समाज के अनुरूप चलने वाला इन्सान था,उसके ...और पढ़ेका फालतू लोगों और फालतू के व्यसनों से दूर दूर तक का नाता नहीं था,लल्लन और उसका पति एक ही परिवार से ताल्लुक रखते थे,लेकिन दोनों भाइयों के व्यवहार में जमीन और आसमान का अन्तर था,शैलजा यही सब सोच रही थी कि तब तक शास्त्री जी स्नानघर से हाथ मुँह धोकर निकल आए और शैलजा से बोलें.... "एक गिला ठण्डा