शहर का उदास स्कैच ओस की बूंदें पत्तों-टहनियों से रूख़सती लेतीं … टिपटिपाती हुई ज़मींदोज़ ... सुबह ...
अधूरी कविताओं को अधूरी लालसाएं समझना… जब सांस घुटती है बारुद के धुँएं में आवाजें ...
माँ... तुम बिन बिन इह लोक, जगत मर्माहत सूने अंचल और इन्द्रधनुष प्रेम,त्याग,क्षमा,दया की धाराधैर्य,कुशलता,धर्मपरायण जीवन रहा ...