Vrajesh Shashikant Dave लिखित कथा

अन्तर्निहित - 18

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 549

[18]दूसरे दिन प्रभात होने पर सारा तथा बाकी के तीन लोग आगे की यात्रा की सज्जता करने लगे। यात्रा ...

अन्तर्निहित - 17

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 546

[17]वकार के घर रात्री के समय भोजन के उपरांत सारा, निहारिका, सपन तथा वकार बैठे थे।“वकार, कुछ व्यवस्था है ...

अन्तर्निहित - 16

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 786

[16]“मैं बताती हूँ। उस प्रदर्शनी में मैंने अपना कोई शिल्प नहीं रखा था। किन्तु वहाँ मुझे सब के सम्मुख ...

अन्तर्निहित - 15

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 888

[15]“शैल, इस प्रकार किसी निर्दोष व्यक्ति को प्रताड़ित करना पुलिसवालों का स्वभाव होता है यह मैं जानती थी। इसीलिए ...

अंतर्निहित - 14

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.2k

[14]सूरज अब अस्त हो चुका था। पश्चिम आकाश अपना रंग बदल रहा था। शैल भी अपना रंग बदल रहा ...

अंतर्निहित - 13

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.4k

13]त्रिवेंद्रम रेलवे स्टेशन पहुंचकर शैल ने वत्सर के गाँव तक की यात्रा टेक्सी से पूरी की। गाँव में उसने ...

अंतर्निहित - 12

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.8k

[12]“देश की सीमा पर यह जो घटना घटी है वह वास्तव में तो आज कल नहीं घटी है।”“क्या मतलब ...

अंतर्निहित - 11

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.4k

[11]रात्री के भोजन के उपरांत सारा सोने के लिए सज्ज हो रही थी तभी उसके द्वार को किसी ने ...

अंतर्निहित - 10

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 2k

[10]प्रात: होते ही सारा खुली हवा में कुछ समय तक घूमने चली गई। प्रभात की वेला में उसे भारत ...

अंतर्निहित - 9

by Vrajesh Shashikant Dave
  • 1.5k

[9]येला गंगटोक लौटने की तैयारी कर रही थी तब उसने समाचार में देखा कि किसी एक नगर में पुलिसवालों ...