dinesh amrawanshi लिखित कथा

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 16

by dinesh amrawanshi
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तभी प्रोफेसर अवस्थी कैंटीन से उठ कर चले जाते हैं रिचा ये देख कर मन ही मन सोचने लगती ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 15

by dinesh amrawanshi
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रितु कि बच्ची तुम दोनों कोन सा कैंटीन मे बैठने के लिए कॉलेज जल्दी आई हो अब ये तो ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 14

by dinesh amrawanshi
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रिचा चौक जाती है पापा आप, आप कब आए रिचा के पापा कहते है गुड़िया मैं तो अभी आया ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 13

by dinesh amrawanshi
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आरूशी रिचा को ऋषिकेश घुमाने ले जाती है तनु भी साथ मे जाती है शाम को घर लौटती है ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 12

by dinesh amrawanshi
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मैं ठीक हूँ तू कैसी,मैं भी ठीक हूँ, मामा जी मामी जी नहीं आई,रिचा के पापा कहते हैं नहीं ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 11

by dinesh amrawanshi
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तो रिचा कही खोई खोई सी लगती है रिचा की माँ ये देख कर कहती है रिचा बेटा तू ...

जस्बात-ऐ-मोहब्बत - 10

by dinesh amrawanshi
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ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहता और कुछ ही दिन मे कॉलेज फर्स्ट इयर के पेपर भी खत्म हो ...

जस्बात-ए-मोहब्बत - 9

by dinesh amrawanshi
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हैलो नयन्सी हो गई तू तैयार नयन्सी कहती है रिचा यार तू भी न मैं जानती हु तू बेचैन ...

जस्बात-ए-मोहब्बत - 8

by dinesh amrawanshi
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और रिचा फ़्रेश होकर खाना खाने चली जाती और खाना खाकर जल्दी से रूम मे आ जाती है ओर ...

जस्बात-ए-मोहब्बत - 7

by dinesh amrawanshi
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ठीक है चलो और चारो कैंटीन चले जाते है कैंटीन मे बैठ कर चारो मस्ती करते है एक दूसरे ...