जॉन हेम्ब्रम लिखित कथा

राब्ता - अंतिम भाग

by John Hembram
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रविवार था सब घर में ही थे बाई आज काम पर नहीं आई हुई थी। राजेश इसी उधेड़बुन में ...

राब्ता - भाग - 2

by John Hembram
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अगले दिन सुबह जब वो नाश्ता करने बैठा उस दौरान उसने अपनी मां से पूछा — "क्या आपको कोई ...

राब्ता - भाग - 1

by John Hembram
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"तो क्या हमें मिलना चाहिए?""क्यों नहीं जरूर।" "कल सुबह 10 बजे उसी रेस्टोरेंट पर।""तय रहा।" अगले दिन राजेश सुबह ...

मुझे कोई अफ़सोस नहीं

by John Hembram
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एक दिन मुझे मेरा एक दोस्त आकर कहता है "ये तू क्या फालतू की चीजें कर रहा है?" "ये ...

जादुई तोहफ़ा - 5 - अंतिम भाग

by John Hembram
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अनुज पूरी शाम उस ताबीज़ के बारे में सोचता रहा। उसका मन इधर से उधर घूमता ही रहा।"क्या उसने ...

जादुई तोहफ़ा - 4

by John Hembram
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अगले दिन फिर सुबह जल्दी उठकर उसने अनुज से मिलने का सोचा। और वो निकलने ही वाला होता है ...

निष्ठा

by John Hembram
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शाम का वक्त था परिणीति अपनी मां के लिए दवाइयां खरीदने बाजार गई हुई थी। उसके पिता बचपन में ...

जादुई तोहफ़ा - 3

by John Hembram
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अगले दिन वह रोज के समय से पहले उठ गया और उससे मिलने की योजना बनाने लगा। बिना किसी ...

जादुई तोहफ़ा - 2

by John Hembram
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अगले दिन जैसे ही वह सुबह उठा,फौरन अपने तोते के पास चला गया। तोता पहले से ठीक नजर आ ...

जादुई तोहफ़ा - 1

by John Hembram
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एक गांव के बिलकुल बीचों बीच प्रतीक का घर था। जब भी कोई दूर के रिश्तेदार आते "कितना बड़ा ...