Kailash Banwasi लिखित कथा

प्रतिकर्षण

by Kailash Banwasi
  • 6.8k

प्रतिकर्षण कैलाश बनवासी बस से उतरकर उसने घड़ी देखी-ग्यारह दस. यह गाँव उसका नहीं है. वह तो यहाँ से ...

गोमती एक नदी का नाम है

by Kailash Banwasi
  • 7.6k

गोमती एक नदी का नाम है कैलाश बनवासी मौका पाते ही मैंने बिसाहिन बाई से पूछ लिया, “ कइसे, ...

लुप्त होता इंद्रधनुष

by Kailash Banwasi
  • 6.3k

लुप्त होता इंद्रधनुष कैलाश बनवासी ...और सारी आठवीं कक्षा ठहाकों में जैसे नाचने लगी-हा-हा-हा! हो-हो-हो! ही-ही-ही...! मैं भीतर ही ...

अलगाव

by Kailash Banwasi
  • 6.5k

अलगाव कैलाश बनवासी एकदम अप्रत्याशित था. नियुक्ति पत्र था. यू.डी.सी. पोस्ट. जिला-जबलपुर. माँ ने पोस्टमैन को पाँच रुपयेका नोट ...

नो !

by Kailash Banwasi
  • 4.3k

‘नो’! कैलाश बनवासी ‘‘प्रभा, लोन वाली फाइल का अपडेट करके जाना। ...ये आगे भेजना है। ’’ अविनाश सर ने ...

दोहराव

by Kailash Banwasi
  • 5.4k

दोहराव कैलाश बनवासी हड्डियों का ढाँचा यानी बाप,इन दिनों फिर बेतरह बौखलाया हुआ रहता है. संकी तो वह पैदाइशी ...

कुकरा कथा

by Kailash Banwasi
  • 7.9k

कुकरा कथा कैलाश बनवासी अब उनका बिहान तो तब है जब हांडा परिवार का बिहान हो. भले ही सुरुज ...

उसकी वापसी

by Kailash Banwasi
  • 5.6k

उसकी वापसी कैलाश बनवासी मैं यहाँ नहीं रहना चाहती! बिलकुल भी नहीं रहना चाहती!ये जगह बिल्कुल भी अच्छी नहीं ...

सात कंकड़

by Kailash Banwasi
  • 4.5k

सात कंकड़ कैलाश बनवासी भरी दोपहरी थी. चुनाव कार्य में लगी बस हम चार लोगों को हमारे मतदान-केंद्र वाले ...

लोहा और आग़... और वे…

by Kailash Banwasi
  • 7.1k

लोहा और आग़... और वे… (कवि केदारनाथ सिंह के लिए, सादर) कैलाश बनवासी वह दिसम्बर के आख़िरी दिनों की ...