Kota Rajdeep लिखित कथा

ग़ज़ल, कविता, शेर

by Kota Rajdeep
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प्रेम-जल बरशा बादल से, दरख़्त की हर पत्तियां सुनहरी हों चली हैं।अंगड़ाई लिए नई कोंपलें उठती हैं, जमीं कितनी ...

કવિતા

by Kota Rajdeep
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પળ ભર રહીને હું ચાલ્યો આવીશ પાછો પ્રિયતમામને રજા આપો જવાનીશું લાગે છે તમનેહું રહી શકીશ દેવલોક માં વગર ...

ग़ज़ल, शेर - 4

by Kota Rajdeep
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अब मुसलसल यादों में आता ही नहींलगता है मुझसे बेवफ़ाई मोड़ ली है।___Rajdeep Kotaरोना धो ना सब सहना सीख ...

ग़ज़ल, शेर - 3

by Kota Rajdeep
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मिले तो होगी फ़िर वोही बात जुदाई किइससे अच्छा हैं ये दिन ऐसे ही बसर होने दें।___Rajdeep Kotaदेर तक ...

ग़ज़ल, शेर - २

by Kota Rajdeep
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अब वोही पुराने ज़ख्म ताजियाना क्यों करें।इश्क़ के दरख़्त पे नया आशियाना क्यों करें।___Rajdeep Kotaजब ये लालिमा कालिमा मैं ...

ग़ज़ल, शेर

by Kota Rajdeep
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न था इंतज़ार कीसुका फ़िर भी उम्र भर इंतज़ार में रहें