prabha pareek लिखित कथा

अनुस्वार

by prabha pareek

अनुस्वारअति चचंल उछल कूद करती रहने वाली सीमा जिसे सहेलियों के साथ मस्ती और खाना खेलना ही अपनी दुनियाँ ...

पीहर

by prabha pareek
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पीहरसुबह बाबुजी का फोन आया ,मां के जाने के बाद बाबुजी के बस एक आध ही तो फोन आये ...

अधिकार

by prabha pareek
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अधिकारबत्तीस वर्षीय संदीप को दूसरा विवाह करते समय इस बात की पूरी जानकारी थी कि परिवार को बांधे रखने ...

महारानी

by prabha pareek
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महारानी काली कलूटी महारानी के आगे रूपसी नीता हमेशा दबी रहती। घर में रौब चलता उसका....नीता सुबह उठ कर ...

एक भयानक चेहरा ये भी

by prabha pareek
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भयानक चित्र यह भी देवदत्त एक साधारण व्यक्ति था। आज के कुछ वर्षो पहले भी वह कूंची का धनी ...

रंगों भरी होली

by prabha pareek
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रंगों भरी होली त्योहार चाहे कोई भी क्यों न हो, हमारे बुजुर्गों का भी मन मचलता है कि वह ...

समर्पण

by prabha pareek
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समर्पण तृप्ति आखिर पहुंच ही गई उस घर के दरवाजे तक| राज्य परिवहन की बस से उतरते समय ...

उसका नया साल

by prabha pareek
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उसका नया साल साहित्य सम्मान समारोह में मेरा उससे मिलना हुआ था। वह अलग थलग सी रहने वाली बगावत ...

अहसान

by prabha pareek
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अहसान कस के बांधे गये बालों का जूड़ा, क्या मजाल एक बाल भी दिन भर में इधर से उधर ...

सावन की तीज

by prabha pareek
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सावन की तीज सुहाना मौसम और बारिश की पड़ती रिमझिम फुहार के बीच जब कभी सौरभ का फोन अमरीका ...