Prabodh Kumar Govil लिखित कथा

दिवास्वप्न

by Prabodh Kumar Govil
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"दिवास्वप्न"एक दूसरे से सटे फ्लैट्स का यही फायदा है कि कभी - कभी सहज ही कही गई बातें भी ...

सबा - 34

by Prabodh Kumar Govil
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मंत्रीजी के वापस लौट कर आते ही पीछे पीछे एक सेवक बड़ी सी ट्रे में तीन चार प्लेटें लेकर ...

सबा - 33

by Prabodh Kumar Govil
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मंत्रीजी एकाएक उठ कर भीतर चले गए। उनका चेहरा अपमान और गुस्से से तमतमाया हुआ था। बाउंसर्स को बुलाने ...

सबा - 32

by Prabodh Kumar Govil
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राजा लौट आया। विदेश से लौटने के बाद उसने अपने मैनेजर साहब से कुछ दिन गांव में ही रहने ...

सबा - 31

by Prabodh Kumar Govil
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राजा को बड़ा अजीब सा लगा। यदि वो अपने देश में होता तो शायद अपने दोस्तों के साथ मिल ...

सबा - 30

by Prabodh Kumar Govil
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- ये कैसे हो सकता है? बिजली लगभग चिल्ला पड़ी। - कैसे हुआ, ये कहानी तो सिर्फ़ तुम बता ...

सबा - 29

by Prabodh Kumar Govil
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राजा को बड़ा अचंभा हुआ। यही कुछ तो खुद अपने देश में भी हुआ था। हां, बस नाम कुछ ...

सबा - 28

by Prabodh Kumar Govil
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सालू को दो दिन के लिए कहीं जाना था। यहां आने के बाद से ही उसकी व्यस्तता काफ़ी बढ़ ...

सबा - 27

by Prabodh Kumar Govil
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ज़िंदगी संयोगों का ही नाम है। जब राजा ने ये सुना कि नंदिनी नाम की इस लड़की की शादी ...

सबा - 26

by Prabodh Kumar Govil
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नंदिनी की कहानी भी अजीबो- गरीब थी। उसका रिश्ता बहुत छोटी सी उम्र में किसी परिजन के माध्यम से ...