Rajesh Shukla लिखित कथा

फ़ैसला - 14 - अंतिम भाग

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (14) आज शायद इस मुकदमे का आखिरी दिन हो। यही बैठे-बैठे कमरें मंे सिद्धेश सोच ही रहा था ...

फ़ैसला - 13

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (13) खिड़की पर आकर बैठी चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुल गयीं तो देखा कि भगवान भास्कर की ...

फ़ैसला - 12

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (12) आज वह दिन आ गया जब उसे खन्ना जी के कोर्ट जाना था। सिद्धेश ने सबेरे ही ...

फ़ैसला - 11

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (11) अगले दिन सवेरे सिद्धेश ऑफिस जाने के लिए तैयार ही हो रहा था कि अचानक किसी ने ...

फ़ैसला - 10

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (10) इस तरह से धीरे-धीरे दो दिन का समय भी बीत गया। सबेरे-सबेरे ही उठकर सिद्धेश ने एडवोकेट ...

फ़ैसला - 9

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (9) देर रात में सोने के बाद भी सिद्धेश सबेरे 8 बजे ही उठ गया। उसने सबसे पहले ...

फ़ैसला - 8

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (8) आज सबेरे ही मुझे बहुत अजीब लग रहा था। दिल में रह रहकर घबड़ाहट होने लगती थी। ...

फ़ैसला - 7

by Rajesh Shukla
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फ़ैसला (7) आंख खुली तो फिर दूसरे दिन की सुबह, भास्कर देव नीले आसमान में अपनी स्वर्णिम आभा बिखेरते ...

फ़ैसला - 6

by Rajesh Shukla
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मैंने जैसे ही लेटने के लिए बेटी को एक ओर बिस्तर पर खिसकाना चाहा, कि उसी क्षण अभय लड़खड़ाते ...

फ़ैसला - 5

by Rajesh Shukla
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सुगन्धा ने अपने का सिद्धेश की बांहों से छुड़ाते हुए कहा कि इस तरह का जीवन जीते हुए लगभग ...