नन्दलाल सुथार राही लिखित कथा

तमाचा - 43 (दस्तक)

by नन्दलाल सुथार
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दूर दूर तक सिर्फ रेत ही रेत। रेत के बड़े-बड़े पहाड़ जिस पर कहीं कहीं खेजड़ी और फोग की ...

तमाचा - 42 (मिलन)

by नन्दलाल सुथार
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"अगर तुम नहीं आओगी तो कोई नहीं जाएगा।" "तुम समझा करो मेरे बहुत जरूरी काम आ गया है। पापा ...

तमाचा - 41 (टूअर टू जैसलमेर)

by नन्दलाल सुथार
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चारों तरफ उगी हरी-हरी दूब जिसमें कम पानी की वजह से हल्का पीलापन आया हुआ था । कई सारे ...

तमाचा - 40 (बॉर्डर)

by नन्दलाल सुथार
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प्रातः की स्वर्णिम वेला में सूर्य ने अपनी किरणों के हस्ताक्षर द्वारा अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी थी। दूसरी ...

तमाचा - 39 - (गुल )

by नन्दलाल सुथार
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"नमस्ते आंटी जी।" बिंदु ने घर का मुख्य दरवाज़ा खोलते हुए कहा। जहाँ सारिका खड़ी थी।"नमस्ते ,कैसी हो बिटिया?""अच्छी ...

तमाचा - 38 (मीटिंग )

by नन्दलाल सुथार
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"तू कहाँ चला गया था रे? देख तेरी माँ को क्या हो गया?" मोहनचंद ने व्याकुलता की दशा में ...

तमाचा - 37 (शरद )

by नन्दलाल सुथार
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"आओ आओ विक्रम जी। आज हमारी कैसे याद आ गयी।" विक्रम के पड़ोसी शर्मा जी ने उनका स्वागत करते ...

तमाचा - 36 ( द्वंद्व )

by नन्दलाल सुथार
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"अभी तक मैं इक्कीस साल का भी नहीं हुआ। अभी मेरा अध्ययन चल रहा है। ना तो आपने मेरे ...

तमाचा - 35 (चिंगारी)

by नन्दलाल सुथार
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रात अपने प्रिय अस्त्र चाँदनी के साथ शीतलता बरसा रही थी। जिससे कोमल भावनाओं वाले प्रेमी उसके समक्ष आत्मसमर्पण ...

तमाचा - 34 (स्टार )

by नन्दलाल सुथार
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"प्रिय विद्यार्थियों आपने कॉलेज इलेक्शन में जो फैसले लिए है। वह बेहतरीन है। हालांकि दिव्या मेरी बेटी है और ...