1 भोर होते ही खेतों की अधुरीसी, ओंसभऱी नींद खूल गई ओंस की टिपटिपाती बुंदों से मिट्टी अधगिली हो गई मस्तमौला पखेरू ने फैलाए अपने पंख मुलायम लहराती हवाओं से काँप उठे चिडियों के अंग हरी लहराती घास के धीरे से चमक उठे धारे सुरज किरणों की स्पर्श से फुलों की महक उठी डाले आकाश की निलयता में घुल गए रंग फुहारे धीरेसे खिल उठा जीवन अपने ख्वाबों के सहारे .................................. 2 हरे भरे पतों के पिछे धीरे से किसी की नींद खुली रेशम स्पर्श पराग का आनंद से गुनगूनाने लगी मयुरपंख
गुलदस्ता - 1
1 भोर होते ही खेतों की अधुरीसी, ओंसभऱी नींद खूल गई ओंस की टिपटिपाती बुंदों से मिट्टी अधगिली गई मस्तमौला पखेरू ने फैलाए अपने पंख मुलायम लहराती हवाओं से काँप उठे चिडियों के अंग हरी लहराती घास के धीरे से चमक उठे धारे सुरज किरणों की स्पर्श से फुलों की महक उठी डाले आकाश की निलयता में घुल गए रंग फुहारे धीरेसे खिल उठा जीवन अपने ख्वाबों के सहारे .................................. 2 हरे भरे पतों के पिछे धीरे से किसी की नींद खुली रेशम स्पर्श पराग का आनंद से गुनगूनाने लगी मयुरपंख ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 2
8 तुफानों के लपेट में आकर बिखरते बिखराते दौडते जाए सपन सलोनी परी देश में बादल संग उडते जाए गुलाबी पंखुडियों जैसी आसमान की सैर रंगीन नजर आती है कही दूरसे परीयों की जादुई मंजिल ठंडे गहिरे पत्तो में से लहराती सुंदरता दिख जाए आरसपानी निलयता में इंद्रधनू के द्वार खुल जाए चमचमाती चांदनियों की झिलमिलाहट निखऱाए वही से गुजरती गलियाँ परी देश में मिल जाए मधुर संगीत तलम सूरों पर सपना हलकासा आए स्वप्नपरी के चैतन्यभरे अणु रेणु के धागे बिखराए खिले हुए उसी ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 3
१४ परबतों के पैरोंतले एक साँस रुक गई ऊँची चोटियाँ देख के मन की उमंग थम गई परबत चोटियों लंबे कठिन रास्ते कही चुभ न जाए काँटा आगे जाना है संभालते छोटे बडे पत्थरों के झुंड आढी तिरछी चलान ढलान गरम हवाओं के झोकों से पंछी भी हो गए हैरान हाँथ कपकपाने लगे फुलने लगी सांसों की लडियाँ पसीनेसे भीगे हुए बदन ने ली अंगडाईयाँ चढते चढते अचानक एक रास्ता खुल गया ठंडी हवा के झोकोंने झंझोडकर रुख मोड दिया गुलमोहर पेड के नीचे लाल फुलोंने कालीन बिछाई तालाब से गुजरती छाँव ने उसकी रंगीन तसबीर ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 4
गुलदस्ता - ४ २० खुले मैदान में जब बिजली चमकी तब होश गवाँकर मैं उसे देखतेही रह गई उसका बाज चापल्य से किया हुआ चकाचोंध शुभ्रता का साज तेज रफ्तार गती की प्रचंड ताकत अनाहत नाद की गुंजती हुई प्रखर वाणी गगन व्यापक मस्ती मालिन्य धो देने का ध्यास क्षणमात्र के दर्शन से वह आत्मस्वरूप तेज देखकर महसुस हुआ यह भी एक सगुण साक्षात्कार है इसी भावावेश में अपना होश गवाकर मैने आँखे बंद कर ली ................................ २१ समंदर की अनंतता में शोर करते हुए किनारे गहिरा नीला पानी सेतू पर सफेद रेत को पुकारे दौडती आती है ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 5
२४ जस्मिन के लता मंडप में कितने फुल गिर गए धरती पर गिरे बारिश पर सजकर बैठ निखर रहे फडफडाते गुनगूनाते चिडियाँ आती जाती जस्मिन की खुशबू भरे पानी में नहाकर उड़ जाती हरे पत्तों के पिछे से जस्मिन के फूल सफेद चाँदनियों जैसे चमकते है कलियों का अंबर, अपना घुंघट सरकाते है बिदाई लेकर कलियों के फुल धरती पर गिर जाते है कल अपना यही हाल होगा कलियाँ यह जान लेती है अधखिली पंखुडियाँ, धीरे से खोलते, फूल खिलखिलाता है खुद की सुगंध भरी जिंदगी में आप ही खो जाता है आसमान में खिले सितारे नीचे जस्मिन के ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 6
३१ साँझ की बेला में रात की रानी का सुगंध आया आँगन के कोने में महकती उसकी छाया सुगंध जुडी यादों का सिलसिला भी छलछलाता गया तू आकर चला गया था हमेशा के लिये कर दिया पराया उस दिन सुगंध में दोनो खो गये थे एक दुसरे से बिछडने का गम झेल रहे थे न खता थी तुम्हारी, ना मेरी फिर भी दुनिया के मेले में अब हम खोने चले थे हमे कभी याद करना, ऐसे शब्द हम दोनो ने भी नही कहे थे क्यों की याद करने के लिये कभी एक दुसरे को हम भूल ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 7
३६ उँचाई को छुने वाले बुलंद किले उनके राजाओं की कहानी बताते है बेखौफ दरवाजे हाँथियों की टकराव के बडे गर्व से दिखाते है कितने राजाओं ने राज्य किया आए और गए पर मैं अभेद्य रहा हर एक राजा का राज्याभिषेक देखा और उनका पराभव भी कण कण से लढता रहा तोफ के गोले झेलता रहा लेकिन अंतरशत्रू के आगे मैं हार मानता रहा अब गए वो राजे रजवाडे केवल निशानियाँ रह गई वीर गाथा सुनाने के लिये अब मुझे स्मारक बनाया गया ................................ ३७ पहली बार जब लडकी साडी पहनती है, तब वो एक अलग मोड पर खडी ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 8
४२ आँगन में रेखिक रंगोली अपने सफेद रंग में उंगलियों से उतरती जाती है तब कलात्मक रेखाँए, बिंदु, महिरप अस्तित्वता से सजती जाती है उसके रंग, रूप, रेषा, जितने भगवान के पास ले जाते है उतना ही रंगोली का शुभ्रत्व, सांकेतिकता भगवान के पास ले जाता है ........................... ४३ गुलमोहर के वृक्ष पर बैठा एक पंछी विविधता से कलरव कर रहा था, उसमें कोई माँग नही थी, कोई अर्जी नही थी वो केवल अपने अतीव आनंद में मग्न था उसे जग की भी चेतना नही थी, केवल अपने आनंद ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 9
५० तालाब में सफेद बतख विहार कर रहे थे उपर से कौवा देखकर सोच रहा था ना मैं विहार हूं ,ना मैं सफेद हूं तालाब से बतख कौवे को देखकर सोच रहे थे ,उसके जैसे ना मैं नीले आसमान में उड सकता हूं ना पेड पर चढकर उँचाई पर से दुनिया देख सकता हूँ .......... जंगल की असीम शांती का अपना एक नाद होता है कलकल बहती नदी की धारा में सुरील संगीत का भास होता है .......... फिनिक्स पंछी जैसा रक्षा में से उडान भरने का क्षण खुषी से ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 10
५५ जीवन मतलब कल्पना और वास्तविकता का मिलाफ इन दोनों राहों पर अकेले ही चलना पडता है जनाब ---------------------------------- एक लोहे के जैसा है उसे मेहनत का परिसस्पर्श मिल गया तो उसका सोना बन जाता है ,नही तो आलस्य की शृंखला पाँव में जंजीर बन जाती है ---------------------------------------- ५६ जीवन मतलब एक रंगीन गुब्बारा है कितना भी उपर चला जाए फिर भी चेतना जागरूक रखनी होगी की, यह जीवन का गुब्बारा कभी भी फट सकता है ------------------------------- पीले जर्द केतकी के फूल जब हरे पत्तों में, लिपटे हुए छुपके से देखता है, तब उसके ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 11
६२ जीने की चाह क्या होती है यह बात जिन क्षणों ने, सामने से मृत्यू देखा है उनको पुछना कितनीही वेदनाओं से भरी जिंदगी हो फिर भी उसे जीवन के लिए मोह रहता है ऐसा क्या है जीवन में, व्यक्ति मृत्यू दूर रखने का ही प्रयास करता है मृत्यू के बाद क्या है ? उसका डर ? या मोहमयी दुनिया से बिछडने का गम ? ........................................... ६३ वेदना हृदय की गहराई में उतरती गई अहम स्मृती का निर्माल्य हो गया दुःख का फूल खिलकर पानी ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 12
६८ सुना है काल की धारा में आदमी के स्वभाव में परिवर्तन आता है फिर भी कुछ आदमियों के से वीणा की झंकार नही सुनाई देती सितार की धुन उनके देह में नही लहराती मौन गले से , सुरवटों की लडियाँ नही बहती आँखों के पंछी खूषी से नही फडफडाते यह सब देख के उनके जीवन में आनंद मौन हो जाता है कुछ तो अलग बदलाव आया है यह जानकर व्यक्ति के अंदर से एक आवाज गूनगुनाने लगती है वह सुनके संगीत को पता चलता है आदमी बदल सकता है ,और व्यक्ति को ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 13
गुलदस्ता १३ ७४ आंखों की गहराई से शाम, झील में उतरती गई की लयकारी में समाती चली गई नसनस की लंबाई नापते अंदर चलती रही हृदय के गुढ अंधेरे में उपर नीचे होती रही देखी उसने तप्त भुख की अग्निज्वाला पेट में तडफडाए रस के लाव्हा सुरमई शाम, यह सब देख के , आखों के आँसूओं से बाहर आ गई रात का सन्नाटा और गहरा करते वह सृष्टी दृष्टी से ओझल हो गई ................................. ७५ ब्रम्हाण्ड के चैतन्य से अणू रेणु एकरूप हो गए फिर भी एक बिंदु ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 14
गुलदस्ता १४ Guldasta निसर्ग एक अनुठा जादुगर है, उसी के सान्निध्य में अशांत मन शांती खोजता है। हरियाली, फुल, पंछी, पौधे, नदी समंदर, आकाश, पहाड, अपने सकारात्मक उर्जासे मन शांत कर देते है। ऐसेही निसर्ग की सुंदरता पर कुछ पंक्तिया...... ८० मोड लेते हुए रास्ते लाल रंगों से सजते है हरी रंग किनार की पीले फुलों में लहराते है तितलीयों की रंगीन फडफडाहट किटक का उन्हें देखकर छुप जाना चिटीयों की बारीकसी झुंड, पंछी का मजे से उन्हे चट कर जाना ऐसेही चले जाते है दूर मोड लेते हुए रास्ते जीवन का काम है चलना ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 15
गुलदस्ता १५ Guldasta निसर्ग एक अनुठा जादुगर है, उसी के सान्निध्य में अशांत मन शांती खोजता है। हरियाली, फुल, पंछी, पौधे, नदी समंदर, आकाश, पहाड, अपने सकारात्मक उर्जासे मन शांत कर देते है। ऐसेही निसर्ग की सुंदरता पर कुछ पंक्तिया...... ९१ नीले नीले आसमान पर, संध्या की छाया गहराई डुबते सुरज की किरणोंने सुनहरी लालिमा फैलाई अबुजसा हुवा वातावरण एक सन्नाटा छा गया अंधेरे की दस्तक सुनकर सुरज मुडकर चला गया लौट गई सारी दुनिया अपने अपने घरोंदो में रात का काजल लगाकर सपन सलोने खाब्बों में छाया गहरा अंध:कार अनगिनत तारे झिलमिलाने लगे ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 16
१०१ क्या कोई किसीको समझ सकता है ? अपने मनकी बात किसी को बतला सकता है ? सबका है अपना अपना दुसरों का जीवन किसे भाता है ? सबकी है समस्या बडी बडी तुम क्या जानो मेरा दर्द अपना रास्ता नापो भाई किसे कहाँ है मेरी कद्र सब आऐंगे केवल पुछने हल न कोई बताऐंगे पीठ पीछे अपनेही लोग दर्द का मजाक बनाएंगे अरे, दुनियावालो मुझे भी परवाह नही तुम्हारी तुम जियो मैं भी जिऊंगा दुनिया है मतवारी ...................... १०२ दुर पहाडपर बिजली चमकी घनघोर अंधेरा पलट गया क्षणभर के उजाले में ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 17
गुलदस्ता : १७ १०७ हवाँ के झोंके से हिलनेवाले पत्तोंने, एक बात बताई है दुर से कही वर्षा बरसी है मुझे छु रही है उसकी ठंडक हवाँओ के साथ जो बह रही है अटक गई है कई बुंदे डालपर उन्हे छुडाओ कह रही है मैंने तो सुनली उनकी मन की बात उन्हे तो गिरना है धरतीपर क्या करेगी डाल पर बैठे उनका जहाँ जमीनपर ........................ १०८ बहोत दिनों बाद आज मैं गाव गया बचपन की पुरानी यादों के साथ खुषी से झुमता गया मन में रची थी बहोतसी कल्पनाएँ मिलूंगा बचपन ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 18
गुलदस्ता १८ ११३ इतना सुंदर नीला आसमान जैसे छाता पृथ्वी का बीच में लहराए सफेद बादल खिलोना पृथ्वी का उडते फिरते पंछी देखकर जी ललचाए पृथ्वी का हवाँओं से छुना चाहे मन भर आये पृथ्वी का पालना घुमाए सुरज चंदा हिंदोला दे पृथ्वी का पेड वृक्ष ...अजून वाचा
गुलदस्ता - 19
११८ कलियोंने हलकेसे फुलों को कहाँ बताओ तो जरा, कैसे दिख रही है दुनिया, तुम्हारे खिल जाने से क्या के चेहेरे खिल गए है ? तुम्हारी सुगंध से उनके आँगन महक उठे है ? यह जानकर क्या लोग तुम्हे सहला रहे है ? फुलोंने हँसकर उनसे कहाँ अरे पगली, हम दुनिया के लिए नही खिलते है अपना वजुद है खिलना तो उसके लिये जीते है किसी ओर की तरफ तुम अपनी खुषी ढूँढोगी तो तुम्हारा खिलना व्यर्थ हो जाएगा तुम सिर्फ अपने लिये खिलो हवाँ का आनंद लो भँवरों की गुनगूनाहट सुनो और शाम को हलकेसे जमिन ...अजून वाचा