मालिका....आयुष्यातल्या अनुभवांची - 2

  • 7.3k
  • 5.7k

पान २       आता  सगळ्यांचे  पालक  गेले  होते ,  त्यामुळे  आम्ही  रूम  मध्ये  बसलो  होतो . सगळेच  एकमेकांना  नवीन  होते .  त्यामुळे  हळू  हळू  नाव  विचारण्यापासून  ओळख  करून घेण्याचं  काम  चालू  होत .  तेवढ्यात  एक  घंटा  झाली .  वरच्या  मजल्या  वरच्या  सगळ्या  मुली  खाली  येताना  आम्हाला  दिसल्या .  त्यांना  विचारल्यावर  समजलं ,  रोज संध्याकाळी  ६.३०  ला  प्रार्थनेची  बेल  होते , आम्ही  लगेच  त्यांच्या  मागे  गेलो .  नवीन  होतो , म्हणून  काहीच  माहित  नव्हतं  ना !      सगळ्या  मुली  एका  लाईन  मध्ये  बसल्या  होत्या .  आम्ही  पण  मागे  बसणार  तेवढ्यात  आमच्या  रेक्टर  ( राजगिरे बाई )  म्हणाल्या ,