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मालिका....आयुष्यातल्या अनुभवांची - 2

पान २

 

    आता  सगळ्यांचे  पालक  गेले  होते ,  त्यामुळे  आम्ही  रूम  मध्ये  बसलो  होतो . सगळेच  एकमेकांना  नवीन  होते .  त्यामुळे  हळू  हळू  नाव  विचारण्यापासून  ओळख  करून घेण्याचं  काम  चालू  होत .  तेवढ्यात  एक  घंटा  झाली .  वरच्या  मजल्या  वरच्या  सगळ्या  मुली  खाली  येताना  आम्हाला  दिसल्या .  त्यांना  विचारल्यावर  समजलं ,  रोज संध्याकाळी  ६.३०  ला  प्रार्थनेची  बेल  होते , आम्ही  लगेच  त्यांच्या  मागे  गेलो .  नवीन  होतो , म्हणून  काहीच  माहित  नव्हतं  ना !

     सगळ्या  मुली  एका  लाईन  मध्ये  बसल्या  होत्या .  आम्ही  पण  मागे  बसणार  तेवढ्यात  आमच्या  रेक्टर  ( राजगिरे बाई )  म्हणाल्या ,  '  मागे  बसलेल्या  मुलींनी  पुढे  एक लाईन  करा  चला  उठा ' आता  वाटलं  एवढ्या  पुढ  कशाला  बोलवलं  असेल ? पण , काय  करणार ? गेलो  पुढे  बसायला . प्रार्थना  झाली , आता  बाईंनी  सगळ्यांना  एक  एक करून  पुढे  सगळ्या  मुलींसमोर  येऊन  आपली  ओळख  करून  द्यायला  सांगितली .  आम्ही त्यानंतर  जेवायला  मेस  मध्ये  गेलो .  त्या  दिवशी  जेवायला  बटाट्याची  भाजी    होती .  मला  वाटलं ,  रोजच  बटाटा  असतो  इथे  जेवायला .  त्यामुळे ,  निदान माझ  जेवणाचं एक  टेन्शन  कमी  झालं  होत . कारण , मला  बटाटा  ही  एकच  भाजी  आवडत होती . अरे !  हो  एक  सांगायच  राहिलच ,  जेव्हा  आमच्या  रेक्टर  बाईंनी  मला  माझ  नाव  सगळ्या  मुलींसमोर  सांगायला  लावल  तेव्हा ,  मला  इतकी  भीती  वाटली  होती  ना काय  सांगू ?  समोर  उभं  राहून  बोलायची  माझी  पहिलीच  वेळ  होती .  मी  कधीच  समोर  उभं  राहून  बोलायची  Daring  केली  नव्हती . खूप  भीती  वाटायची  मला .  मी सगळ्यांच्या  समोर  उभी  राहिले  होते . तेव्हा  मला  फक्त  माझं  नाव , गाव ,  इयत्ता  एवढेच  सांगायचे  होते  पण , तेवढे  २ मि . सुद्धा  मला  खूप  अवघड  गेले . असं  झाल  होत , कधी  सगळं  सांगून  परत  खाली  बसेल .

     आमच  जेवण  झाल्यावर  बाईंनी  आम्हाला  T.V  दाखवला . नंतर  रात्री  दुधाची  बेल  झाली  आणि  आम्ही  सगळे  दूध  प्यायला  गेलो .  मग  रूम  आलो  आता  झोपणार  होतो .  पण ,  झोप  येत  नव्हती .  घरची  आठवण  येत  होती . त्या  रात्री  एक  वाजेपर्यंत  मी  आणि  सई  रडत  होतो .  बाकी  सगळे  झोपले  होते .  रात्री  झोप  न  लागल्यामुळे आम्ही  पहाटेच  उठलो , अंघोळीसाठी  नंबर  लावला ,  सगळं  आवरलं .  ६.४५  ला  सकाळी  दुधाची  बेल  झाली .  आता  हॉस्टेल  मध्ये  कुठे  काय  आहे , हे  सगळ  थोडं  माहिती  झालं  होत . आम्ही  दूध  प्यायला  गेलो .  तेव्हा  भलीमोठी  लाईन  लागली  होती  दूध  घेण्यासाठी .  तेव्हा  कविता  ताई  सगळ्यांना  दूध  वाटप  करायच्या .  आधी  त्यांच नाव  माहित  नव्हतं .  पण , नंतर  सगळ्या  सोबत  ओळख  झाली . नंतर  आमच्याकडे  मोकळा वेळ होता  मग , आम्ही  दप्तर  आवरलं . आमची  शाळा  तेव्हा  दुपारी  १२.१०  ला भरायची .  नवीन  युनिफॉर्म ,  नवीन साहित्य  यामुळे  मस्तच  वाटत  होत .  १०.३०  ला  सकाळी  जेवणाची  बेल झाली .

    आम्ही  जेवायला  गेलो  तेव्हा  ताटात  भोपळ्याची  भाजी  वाढली  होती . मला  तर  फक्त  बटाट्याची  भाजी  आवडायची . तेव्हा  मला  ती  भाजी  पाहूनच  रडायला  आल . पण , काय  करणार ?  ते  घर  नव्हतं , हॉस्टेल  होत .  तिथे  लाड  करायला  मम्मी  पप्पा  नव्हते ,  शिस्त  लावायला  रेक्टर  बाई  होत्या . त्यामुळे  मी  मनाची  तयारी  करून  बळचं  भाजी  खाल्ली  त्या  दिवशी . जेवण  झाल ,  रूममध्ये  आल्यावर  पटकन  नवीन  शूज - सॉक्स  घातले .  N3  असं  नाव  होत  आमच्या  रूमच .  आता  निघालो  मग  सगळे शाळेत .  शाळेचा  पहिला  दिवस  असल्यामुळे  लवकर  जायचं  ठरल  होत  आमच .  हॉस्टेल  च्या  पायऱ्या  उतरल्यावर  लक्षात  आलं ,  आपला  चष्मा  रूम  मधेच  राहिला .  लहान  असतानाच  मला  चष्मा  लागला  होता . मी  कधी  कोणत्या  भाज्या  खायचे  नाही , खूप  T.V  बघायचे , काहीही  झालं  तरी  रडायचे  म्हणून  तुला  चष्मा  लागलाय  असं मम्मी  मला  म्हणायची . मी  चष्मा  आणायला  रूममध्ये  जाणार , तेवढ्यात  शाळेची  घंटा  झाली  आणि  राष्ट्रगीत  सुरु  झाल .

 

पुढचं पान लवकरच.....