kadambari - premavin vyarth he jivan ... book and story is written by Arun V Deshpande in Marathi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. kadambari - premavin vyarth he jivan ... is also popular in फिक्शन कथा in Marathi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कादंबरी प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन - कादंबरी
Arun V Deshpande
द्वारा
मराठी फिक्शन कथा
क्रमशः कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन ,, ले- अरुण वि.देशपांडे ------------------------------ ------------------------------ ------------------ वाचक मित्र हो ,कादंबरी लेखन हा वाचकप्रिय लेखन-प्रकार पहिल्यांदा मी सुरु केला तो मातृभारती -मराठीच्या माध्यामातून ..मातृभारतीवर माझी पहिली कादंबरी ..जिवलगा ..क्रमशा : सुरु आहे , १४ भाग प्रकाशित झाले आहेत ..या लेखनाला आपण खूप चांगला प्रतिसाद देता आहात ...त्याबद्दल खूप खूप आभार . मातृभारती मराठी टीमचे आभार ,त्यांच्यामुळे माझे कादंबरी -लेखन सुरु होऊ शकले आहे.. वाचक मित्रांनो ,तुमचे अभिप्राय आणि वाचन-प्रतिसाद असाच लाभत राहो. तुमचे मन:पूर्वक आभार ..स्नेहांकित -अरुण वि.देशपांडे -पुणे.९८५०१७७३४२ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ -------------------- क्रमशः“ कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन .. भाग- १ ला ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------ समोर
क्रमशः कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन ,, ले- अरुण वि.देशपांडे ------------------------------ ------------------------------ ------------------ वाचक मित्र हो ,कादंबरी लेखन हा वाचकप्रिय लेखन-प्रकार पहिल्यांदा मी सुरु केला तो मातृभारती -मराठीच्या माध्यामातून ..मातृभारतीवर माझी पहिली कादंबरी ..जिवलगा ..क्रमशा : सुरु ...अजून वाचा, १४ भाग प्रकाशित झाले आहेत ..या लेखनाला आपण खूप चांगला प्रतिसाद देता आहात ...त्याबद्दल खूप खूप आभार . मातृभारती मराठी टीमचे आभार ,त्यांच्यामुळे माझे कादंबरी -लेखन सुरु होऊ शकले आहे.. वाचक मित्रांनो ,तुमचे अभिप्राय आणि वाचन-प्रतिसाद असाच लाभत राहो. तुमचे मन:पूर्वक आभार ..स्नेहांकित -अरुण वि.देशपांडे -पुणे.९८५०१७७३४२ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ -------------------- क्रमशः“ कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन .. भाग- १ ला ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ------ समोर
प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन .. कादंबरी – भाग – २ रा ले- अरुण वि.देशपांडे ---------------------------------------------------- प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन क्रमशः कादंबरी – भाग-२ रा ----------------------------------------------------------------------------- सागर – नमस्कार मी सागर , तुमच्या नजरेसमोरची ही वास्तू दिसते आहे ना ,त्या ...अजून वाचानावाच्या वास्तूचा मी घरमालक “.आहे. माझी ओळख मी स्वतहा करून देण्याची गरजच नाहीये, तरीही आपण पहिल्यांदाच भेटलो आहोत ,म्हणून माझ्याबादल सांगतोच थोडे . तसे तर सारे शहर मला ओळखते , सर्वांना मी परिचित आहे . पण, असतात तुमच्या सारखे काही ,ज्यांना मी परिचित नसतो ,कारण तुमचे माझे जग खूप वेगळे आहे. “मी समाजातील एक आदर्श म्हणवले जाणारे असे एक व्यक्तिमत्व
कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन भाग- ३ –रा ---------------------------------------------------------------------- नमस्कार , मी सरिता , मिसेस सरिता सागर देशमुख , सुप्रसिध्द उद्योजक श्री.सागर देशमुख यांची पत्नी “, ही माझी एकमेव ओळख आहे. याशिवाय माझी काही एक ओळख आता शिल्लक ...अजून वाचानाही ,आणि काही खाणाखुणा उरल्याच असतील तर , सागर लगेच त्या खाणाखुणा अगदी नष्ट करून टाकण्यासाठी तत्पर असतो आणि त्याला वेळ नसेल तर .. त्याने सतत माझ्या भवती ठेवलेली त्याची विश्वासू माणसे ही अशी कामे अगदी आज्ञाधारकपणे करीत असतात , न करून ते तरी काय करतील बिचारे “, त्यांना पगार मिळतो तो फक्त याच कारणासाठी . त्यांचे सर -सागर देशमुख यांच्या
कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन –भाग-४ था ------------------------------------------------------------------------------------------------- नमस्कार मित्र हो , मी अभि, अभिजित सागर देशमुख .. या अगोदर आमच्या देशमुख परिवारातील – दोन व्यक्तींशी तुमची भेट झाली आहे त्यातले श्री. सागर देशमुख म्हणजे माझे ...अजून वाचा, आणि सौ.सरीत देशमुख .माझी आई . यांच्याशी तुमची भेट झाली आहे . दोघांनी तुम्हाला त्यांच्याबद्दल काय सांगितले आहे ? हे मी तुम्हाला विचारणार नाहीये. कारण स्वतःबद्दल सांगतांना प्रत्येकजण काळजीपूर्वक सांगत असतो , स्वतःचा परिचय कुणी वाईट शब्दात थोडाच करून देत असतो का ? नाही ना .. त्यापेक्षा आणखी एक महत्वाचे..ते म्हणजे . आपण किती चांगले आहोत “, हे ठासून सांगतांना .. आपल्या भवतीचे सारे
कादंबरी – प्रेमाविण व्यर्थ हे जीवन .. भाग – ५ वा --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- मी अभि.. अभिजित .सागर देशमुख बोलतोय , मित्रांनो - आपल्या आयुष्यात “प्रेमाचे महत्व अनन्य साधारण असेच आहे “.माझी आई -सरिता .. खूप प्रेमळ स्वभावाची . प्रेमाच्या सगळ्या ...अजून वाचातिने तिच्या आयुष्यात अनुभवल्या ,म्हणून ..आपल्या वडिलांनी बांधलेल्या सुंदर आणि देखण्या ..वस्तूला मोठ्या हौसेने तिनेच तर नाव दिले – “प्रेमालय “. पण, जेव्हा तिच्या वडिलांनी ..म्हणजे माझ्या आजोबांनी . निवडलेल्या कर्तबगार अशा . सागर देशमुख या माणसाशी ,त्यांच्या एकुलत्या एक लेकीचे लग्न लावून दिले .. तो क्षण , तो दिवस ..पुढे अगदी लवकरच आजोबांना मोठा धक्का देणारा ठरला आजोबांना स्वतःच्या